आज प्रचार-प्रसार के युग में वे ही चीजें टिकी हुयी हैं, जिनका प्रचार-
प्रसार संगठित एवं बहु-आयामी है. दैनिक जीवन के प्रयोग की वस्तुयें हों अथवा भाषा और
साहित्य सभी के साथ यही स्थिति पायी जाती है. विभिन्न धर्मों के अनुयायियों की आज जो
संख्या है, वह उसके प्रचारकों द्वारा किये गये व्यापक प्रचार-प्रसार का ही परिणाम है. जो भाषा,
साहित्य अथवा धर्म इस प्रक्रिया से नहीं गुजरा, वह या तो लुप्त हो चुका है अथवा लुप्त होने के
कगार पर है.
संस्कृत साहित्य एवं सनातन धर्म के साथ स्थितियां इससे भी भयावह हैं क्योंकि यहाँ वे लोग ही
इसके लिए घातक बन बैठे हैं, जिनसे इसके संरक्षण एवं संवर्धन की अपेक्षा थी. भारत राष्ट्र में
रहने वाले अनेक ऐसे लोग हैं, जो संस्कृत और उसके साहित्य की अपेक्षा अंग्रेजी/फ्रेंच/जर्मन आदि
को अधिक वरीयता प्रदान करते हैं. संस्कृत के अध्येतायों का इस देश में उपहास किया जाने
लगा है और इसको एक वर्गविशेष तक सीमित करने का भी प्रयास किया जा रहा है. देशी और
विदेशी दोनों शक्तियां इसके लिए समानरूप से प्रयासरत हैं.
किसी भी राष्ट्र की उन्नति उसकी भाषा और संस्कृति की उन्नति के बिना नहीं हो सकती है.
संस्कृत में तो व्यक्ति से लेकर विश्वकल्याण तक की सामर्थ्य है, इसलिए इसका संरक्षण एवं
संवर्धन और अधिक प्रासंगिक हो जाता है. हमें वर्तमान पीढ़ी के समक्ष न केवल यह तथ्य
प्रचारित करना होगा कि आज के विश्व में फैली गरीबी, भुखमरी, आतंकवाद, प्राकृतिक संसाधनों
की लूट, वैमनस्यता, वर्गसंघर्ष, स्त्री-पुरुष विद्रूप सम्बन्ध आदि सभी समस्याओं का समाधान
संस्कृत के पास है, बल्कि इस बात के लिए भी काम करना पड़ेगा कि आगे आने वाली पीढ़ी
संस्कृत से जुड़े और व्यवस्थित एवं परिष्कृत जीवन जिये.
सामान्यतः इन विशेष बिन्दुओं पर कार्य करने की अधिक आवश्यकता है -
- माध्यमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले विद्यार्थिओं के बीच संस्कृत भाषा के महत्व एवं
इसके अध्ययन से रोजगार की उपलब्धता पर चर्चा
- माध्यमिक विद्यालयों में अध्यापन करने वाले संस्कृत के अध्यापकों की जागरूकता के
लिए उनके साथ सम्पर्क
- संस्कृत के समसामयिक एवं जनोपयोगी साहित्य का आम लोगों के बीच प्रचार-प्रसार
- निजी विद्यालयों में शिक्षा व्यवस्था में संस्कृत के सम्मिलित किये जाने को लेकर
जागरूकता कर्यक्रम का सञ्चालन
- संस्कृत में निहित विज्ञान एवं पर्यावरण सम्बन्धी तथ्यों का आम लोगों के बीच प्रचार-
प्रसार
- संस्कृत के नीति साहित्य का सरल क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशन एवं वितरण
- सुसंस्कृत जीवनचर्या के नियम-सूत्रों का सरल क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशन एवं वितरण
- सर्वधर्म समरसता के सिद्धान्त का प्रचार-प्रसार
- छोटे-छोटे समूहों तक संस्कृत की पहुँच सुनिश्चित करना तथा उन्हें इससे जुड़ने के लिए
प्रेरित करना
- गीत-संगीत, नुक्कड़ नाटक आदि के द्वारा लोगों को संस्कृत के प्रति आकर्षित करना
- समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं/सोशल मीडिया में संस्कृत साहित्य एवं उसके महत्व से
सम्बन्धित लेख लिखना
- समय-समय पर आम लोगों के बीच संस्कृत से सम्बन्धित विभिन्न कार्यक्रम करना
अकादमी की संस्कृत-प्रचार योजना से जुड़ने के लिए यहाँ पर क्लिक करें
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अकादमी संस्कृत भाषा और साहित्य को हिन्दी भाषा के माध्यम से आम लोगों तक पहुँचाने का कार्य कर रही है, जो विद्वान् इस कार्य
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